अश्वगन्धा के फायदे और नुकसान Ashwagandha Benefits and Side Effects In Hindi

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अश्वगन्धा के फायदे और नुकसान (Ashwandha Benefits and Side Effects In Hindi)
अश्वगन्धा को विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। अश्वगन्धा का हिन्दी नाम असगंध तथा संस्कृत में नाम अश्वगन्धा व वराहकर्णी है। बंगाली भाषा में अश्वगंधा कहा जाता है। मराठी भाषा में आसंध, डोरगुंज कहा जाता है। गुजराती भाषा में आसंध, घोड़ा आहन तथा घोड़ा आकुन के नाम से जाना जाता है। अश्वगन्धा को अंग्रेजी भाषा में Winter cherry नाम से जाना जाता है। अश्वगन्धा एक औषधीय पौधा है, सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। असली अश्वगन्धा के पौधे को मसलने पर घोड़े के मूत्र जैसी गंध आती है जो असली अश्वगन्धा की मुख्य पहचान है। अश्वगन्धा अपने संक्षिप्त नाम असगन्ध के नाम से अधिक जानी जाती है। अश्वगन्धा की तासीर गर्म होती है।
अश्वगन्धा (असगन्ध) दो प्रकार की होती हैः छोटी अश्वगन्धा तथा बड़ी या देशी अश्वगन्धा। बड़ी अश्वगन्धा सम्पूर्ण भारत में पायी जाती है। छोटी अश्वगन्धा राजस्थान के नागौर जिले में बहुतायत में पायी जाती है जिसके कारण इसे असगन्ध नागोरी के नाम से भी जाता है।
अश्वगन्धा में पाये जाने वाले तत्वः
अश्वगन्धा में बिथेनिओल, सोम्मीफेरिन तथा फाइयोस्टेरोल नामक तत्व पाया जाता है।
अश्वगन्धा के गुण धर्मः
अश्वगन्धा औषधीय गुणों का खजाना हैं। अश्वगन्धा कफनाशक, वातनाशक, बाजीकारक, बलवर्ध्दक, वृहन्द, नाड़ दौर्बल्यनाशक, दीपन तथा पाचन रसायन है।
अश्वगन्धा के फायदेः
अश्वगन्धा के एक नही, दो नही बल्कि वहुत से फायदे हैं। यह औषधीय गुणों का खजाना है। अश्वगन्धा के मुख्य फायदे निम्नवत हैः
क्षयरोग नाशक हैः
- दो ग्राम असगन्धा चूर्ण को 20 ग्राम अश्वगन्धा क्वाथ में मिलाकर नियमित रूप से पीने से क्षय रोग में अत्यन्त लाभ मिलता है।
- दो ग्राम असगन्धा चूर्ण, एक ग्राम पीपल के चूर्ण, 10 ग्राम शहद तथा 5 ग्राम घी को आपस में अच्छी तरह मिलाकर मिलाकर सुबह, शाम नियमित रूप से सेवन करने से क्षयरोग ठीक हो जाता है।
कृमिरोग नाशक हैः 5 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को गिलोय के 5 ग्राम चूर्ण के साथ मिलाकर शहद में अच्छी तरह मिलाकर सेवन करने से कृमिरोग ठीक हो जाता है।
खांसीः
- अश्वगन्धा के पत्तो का क्वाथ 40 ग्राम, कत्था के 10 ग्राम चूर्ण, बहेड़े को 40 ग्राम चूर्ण, ढाई ग्राम सेंधा नमक तथा 5 ग्राम काली मिर्च को आपस में मिलाकर 500 मिलीग्राम की छोटी-छोटी गोलियां बना ले। इन गोलियों को चूसने से खांसी ठीक हो जाती है।
- 10 ग्राम असगन्ध की जड़ को कूट कर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर 400 ग्राम जल में उबालें जब 50 ग्राम पानी बचे तो उक्त पानी को नियमित रूप से पीने से कुकर खांसी ठीक हो जाता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृध्दि करता हैः अश्वगन्धा के नियमित सेवन से मानव रक्त में सफेद रक्त कणिका तथा लाल रक्त कणिका में वृध्दि हो जाता है। हीमोग्लोबिन बढ़ जाता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
नेत्र ज्योतिवर्ध्दक हैः दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को दो ग्राम धात्रि फल चूर्ण तथा एक ग्राम मुलहठी पूर्ण के साथ मिला कर एक-एक चम्मच पूर्ण को गुनगुने पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से नेत्रो की ज्योति बढ़ जाती है।
गर्भधारणः
- मासिक धर्म स्नान के बाद 5 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को गाय के घी में मिला कर गाय के दूध या गुनगुने जल के साथ सुबह-शाम एक महीने तक नियमित रूप से सेवन करने पर स्त्री गर्भ धारण योग्य हो जाती है।
- 20 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को 250 ग्राम गाय के दूध तथा एक लीटर पानी मे मिलाकर धीमी आंच पर पकाय़ें, जब 250 ग्राम मात्रा बचे तो उसमें 6-6 ग्राम मिश्री तथा गाय का घी मिलाकर मासिक धर्म स्नान के 3 दिन बाद 3 दिन तक नियमित रूप से सेवन करने से स्त्री गर्भ धारण योग्य हो जाती है।
सन्धिवातः 3 ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को 3 ग्राम गाय के घी तथा एक ग्राम शक्कर में मिलाकर सुबह- शाम नियमित रूप से सेवन करने से सन्धिवात ठीक हो जाता है।
गठियावातः
- अश्वगन्धा के पंचांग को अच्छी तरह कूट पीस कर छान कर 30 से 50 ग्राम चूर्ण सुबह शाम नियमित रूप से सेवन करने से गठियावात रोग ठीक हो जाता है।
- दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को गर्म दूध या पानी के साथ सुबह शाम नियमित रूप से सेवन करने से गठियावात रोग ठीक हो जाता है।
गलगण्ड रोग में अश्वगन्धा के फायदेः अश्वगन्धा पाउडर तथा पुराने गुण को समभाग मिलाकर एक-एक ग्राम की गोली बनाकर सुबह-सुबह खाली पेट नियमित रूप से सेवन करने तथा अश्वगन्धा की पतितियों का लेप बनाकर गण्डमाला पर लेप लगाने से गलगण्ड रोग ठीक हो जाता है।
कब्जः दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को सुबह- शाम गुनगुने पानी के साथ नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज रोग ठीक हो जाता है।
लिकोरिया रोगः अश्वगन्धा चूर्ण, तिल, पुराना गुड़, उरद तथा गाय के घी को समभाग आपस में मिलाकर लड्डू बनाकर सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करने से लिकोरिया रोग ठीक हो जाता है।
इन्द्रिय दौर्बल्य में अश्वगन्धा का प्रयोगः दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को समभाग पुराने गुड़ के साथ मिलाकर सुबह-शाम गाय के गुनगुने दूध के साथ नियमित रूप से सेवन करने से इन्द्रिय कमजोरी दूर हो जाती है।
बुखार में अश्वगन्धा का प्रयोगः दो ग्राम अश्वगन्धा चूर्ण को एक ग्राम गिलोय जूस में मिलाकर सुबह-शाम शहद के साथ नियमित रुप से सेवन करने से पुराना से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
अश्वगन्धा के नुकसानः
- अश्वगन्धा के सेवन से लो ब्लड प्रेशर के व्यक्तियों का ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। इसलिए लो ब्लड प्रेशर के व्यक्तियों को अश्वगन्धा का सेवन नही करना चाहिए।
- ऐसे व्यक्ति जिनका शुगर लेबल कम है, यदि अश्वगन्धा का सेवन करते हैं तो शुगर लेबल काफी घट जाता है। इसलिए कम शुगर वाले लोगों को अश्वगन्धा का प्रयोग नही करना चाहिए।
- ऐसे व्यक्ति जिन्हे नींद न आने की समस्या है, यदि अश्वगन्धा का अधिक समय तक सेवन करते हैं तो नींद न आने की समस्या बढ़ जाती है। इसलिए नींद की समस्या वाले लोगों को अश्वगन्धा का सेवन नही करना चाहिए।
- अश्वगन्धा की पत्तियों का अधिक सेवन करने से पेट में दर्द, गैस, उल्टी तथा दस्त की समस्या हो सकती हैं।
- अश्वगन्धा को सेवन करने से एस्ट्रोजेन हार्मोन को लेबल बढ़ जाने के कारण गर्भवती महिलाओं में सिरदर्द एवं व्लीडिंग की समस्या हो सकती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को अश्वगन्धा के सेवन से बचना चाहिए।
- अश्वगन्धा का सेवन करने से थायराइड के हार्मोन का लेबल बढ़ सकता है जिसके परिणामस्वरुप थायराइड की समस्या बढ़ जाती है । इसलिए थायराइड रोग से पीड़ित व्यक्ति को अश्वगन्धा का सेवन नही करना चाहिए।