योग क्या है ? योगासन के फायदे, नियम और प्रकार

Contents
योग क्या है ?
योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के युज शब्द से हुई है। योग के दो अर्थ हैः समाधि तथा जोड़ने वाला।
योग-भाष्य के अनुसार योग समाधि को कहते हैं जो चित्त का सार्वभौम धर्म होता है। दूसरे शब्दों में चित्तवृत्तियों का निरोध अर्थात् चित्तवृत्तियों की एकाग्रता के ही योग कहा जाता है।
महात्मा याज्ञवल्क्य को अनुसार जीवात्मा तथा परमात्मा का मिलन या संगम ही योग है।
श्रीमदभगवदगीता के अनुसार आत्मा तथा परमात्मा का एकीकरण ही योग है तथा कर्म कुशलता का नाम ही योग है।
वेदान्तों के अनुसार जीव तथा आत्मा का मिलन ही योग है। आगम के मतानुसार शिव एवं शक्ति का अभेद्य ज्ञान ही योग हैं। योग वशिष्ठ के अनुसार संसार सागर से पार होने की युक्ति को ही योग कहा जाता है।
स्वामी शिवानन्द सरस्वती के अनुसार योग वह साधना है जिसके द्वारा जीवात्मा एवं परमात्मा की एकाग्रता का अनुभव होता है और जीवात्मा का परमात्मा से ज्ञानपूर्वक संयोग होता है। आयुर्वेद के अनुसार औषधियों का मिश्रण ही योग है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि वह साधन जिसके माध्यम से जीवात्मा एवं परमात्मा में ऐक्य स्थापित हो सके, योग कहलाता है।
योग के प्रकार
जीवात्मा को परमात्मा से जोड़ने के कई साधन माने गये हैं जिसके कारण योग कई प्रकार के माने जाते हैं। जैसे- ज्ञान योग, कर्म योग, जप योग, राज योग, संकीर्तन योग, हठ योग, भक्ति योग, बुध्दि योग,ध्यान योग, मन्त्र योग, अनाशक्ति योग, शिव योग, कुण्डलिनी या लय योग आदि। उपरोक्त में से कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, कुण्डलिनी योग, राज योग तथा हठ योग प्रमुख हैं।
कर्म योग
श्रीमदभागवतगीता के अनुसार कुशलतापूर्वक कर्म करना ही कर्मयोग हैं। कर्म योग सिध्दान्त के अनुसार कर्म योग के माध्यम से मनुष्य बिना किसी मोह माया में फंसे सांसारिक कर्म करता रहता है तथा अन्त में परमात्मा में लीन हो जाता है।
ज्ञान योग
ज्ञान योग एक ऐसा योग है जिसके माध्यम से मानव मस्तिष्क के अंधकार को दूर किया जा सकता है । ज्ञान योग को प्राप्त करने के लिए एकाग्र होकर चिंतन करते हुए परमात्मा के शुध्द स्वरूप को प्राप्त कर लेना आवश्यक हैं अन्यथा इस योग की प्राप्ति नही की जा सकती है। यह सबसे कठिन योग है।
भक्ति योग
मानव एक सामाजिक प्राणी है जो एक संगठित समाज में रहता है तथा किसी न किसी को अपना ईश्वर मानकर उसका ध्यान, पूजा अर्टना करता है जिसे भक्ति योग कहा जाता है।
कुण्डलिनी योग
कुण्डलिनी योग को लय योग भी कहा जाता है। सुषुप्त कुण्डलिनी को षटचक्र वेधन के माध्यम से जागृत कर उसका सहस्त्र दल कमल में विद्यमान परमात्मा के साथ ऐक्य स्थापित कर लेने की क्रियाओं को कुण्डलिनी योग या लय योग कहा जाता है। कुण्डलिनी योग, हठ योग की चरम सीमा है।
राज योग
बुध्दि प्रयोग के माध्यम से मन की क्रियओं को नियन्त्रित कर विचारों द्वारा चित्तवृत्ति निरोध की स्थिति प्राप्त कर लेने राज योग कहलाता है। यह योग की अन्तिम अवस्था है जिसको समाधि भी कहा जाता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार ऱाज योग के आठ अंग हैः यम, नियम, प्राणायाम, आसन, धारणा, प्रत्याहार, ध्यान तथा समाधि।
हठ योग
मानव शरीर मे षटचक्र विद्यमान हैं। वे समस्त क्रियाएं जिनके माध्यम से मनुष्य अपने शरीर में स्थित षटचक्रों का वेधन करते हुए चित्तवृत्ति के निरोध द्वारा परमात्मा के समीप्य लाभ प्राप्त कर लेता है, हठ योग मे ही आती हैं। हठ योग को योग की प्राचीनतम विधा माना जाता है जिसका आश्रय लेकर ऋषि मुनि हजारों वर्ष तपस्या में लीन रहते थे। हठ योग ही मनुष्य के शरीर की दोनों नाड़ियों इड़ा तथा पिंगला में सन्तुलन स्थापित किया जाता है।
योगासन के नियम
- योग करने का सर्वोत्तम समय सूर्योदय के पूर्व का है। नित्य प्रति भोर में अमृत बेला में उठ कर दो-तीन गिलास गुनगुना पानी पीने के बाद शौच क्रिया, ब्रश, मंजन स्नान से निवृत्त होकर बिना कुछ खाये अर्थात् खाली पेट ही शरीर को थोड़ा से वार्म अप करने के पश्चात योगासन करना चाहिए।
- यदि सुबेरे उठकर योगासन न किया जा सके तो शाम को भी योगासन किया जा सकता है परन्तु यह सुनिश्चत किया जाय के योगासन करने के साढ़े चार घण्टे के अन्दर कुछ न खायें हों।
- योगासन खुले एवं प्रकाशवान स्थल कम्बल, कालीन या कोई अन्य स्वच्छ वस्त्र बिछा कर करना चाहिए।
- योगासन करते समय कम से कम तथा ढीले वस्त्र पहनना चाहिए।
- योगासन करते समय पहले आसान योगासन करना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे कठिन आसन करने चाहिए।
- योगासन करते समय शान्त रहना चाहिए तथा शरीर के किसी भाग को बलपूर्वक नही खींचना चाहिए अर्थात् शरीर का अतिक्रमण नही करना चाहिए।
- योगासन प्रशन्न मुद्रा में एवं धीरे-धीरे तथा बिना झटके के करना चाहिए।
- प्रत्येक योगासन के बाद 6 से 8 सेकेण्ड का विराम देने के बाद ही अगला योगासन करना चाहिए।
- 10 वर्ष से कम उम्र के वच्चों, अस्वस्थ व्यक्तियो, रजस्वला स्त्रियों को योगासन नही करना चाहिए।
- गर्भवती स्त्रियों को गर्भ प्रारम्भ के चार सप्ताह तक योगासन नही करना चाहिए। इसके बाद 7 वें मास तक विशेषज्ञों से राय लेकर ही योगासन करना चाहिए।
- किसी कठिन योगासन को पूर्ण करने के लिए शरीर का अतिक्रमण नही करना चाहिए। धीरे-धीरे निरन्तर अभ्यास करते रहने से वह कठिन योगासन सहज हो जाता है।
- योगासन करते समय प्रतिस्पर्ध्दा कदापि नही करना चाहिए।
- यदि पूर्व में कोई अंग टूट गया हों या आपरेशन हुआ हो जो इलाज से ठीक हो गया हो, उस अंग से सम्बन्धित योगासन नही करना चाहिए।
- योगासन करते समय यदि दम घुटने लगे या हृदय की धड़कन अधिक हो जाये तो तत्काल योगासन बन्द करके शवासन कर के आराम करना चाहिए।
- वयोवृध्द व्यक्तियों को मात्र हल्के योगासन ही करना चाहिए।
- जितने समय तक योगासन किया जाय, योगासन समाप्त होने के बाद उतने ही समय तक शवासन अवश्य करना चाहिए।
- योगासन करने के बाद आधा घण्टे विश्राम करने के पश्चात ही स्नान या खान-पान करना चाहिए।
योगासन के फायदे
- शरीर शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ तथा निरोग रहता है।
- शरीर में रक्त परिसंचरण ठीक रहता है।
- रक्त चाप सन्तुलित रहता है।
- सकारात्मक विचार आते हैं तथा नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं।
- श्वसन प्रणाली स्वस्थ रहती है जो शरीर की जीवनी है।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।
- शरीर में नई उर्जा का संचार होता है।
- पाचन तन्त्र, लीवर व किडनी अच्छी तरह कार्य करते हैं जिससे कब्ज एवं गैस की समस्या से छुटकारा मिल जाता है तथा मेटाबालिज्म बेहतर हो जाता है।
- कोलेस्ट्राल नियन्त्रित रहता है।
- हीमोग्लोबिन बढ़ता है।
- अस्थमा, अर्थराइटिस, माइग्रेन, ब्रोंकाइटिस, हृदयरोग, बांझपन व साइनस से निजात मिलती है।
- शारीरिक तथा मानसिक विकास के साथ-साथ बौध्दिक व आत्मिक विकास भी होता है।
- मनः शान्ति की अनुभूति होता है जिसके कारण मानसिक शक्ति बढ़ती है तथा बुध्दि का विकास होता है।
- मांसपेशियां तथा आमाशय चुस्त-दुरुस्त रहते हैं।
- शरीर लचीला बनता है तथा स्फूर्ति का संचार होता है।
- शरीर सुडौल हो जाता है तथा वजन सन्तुलित रहता है।
- शारीरिक क्षमता विकसित होती है तथा बढ़ती उम्र का असर कम होता है।
- तनाव कम हो जाता है।
- याददास्त, एकाग्रता तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृध्दि होती है।